गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

FDI की बहस से निकले कुछ भूत......


कल आनंद शर्मा को संसद में यह कहते सुन कर बड़ा अजीब लगा कि हल्दीराम भी अपने स्टोर्स बाहर खोल रहा है, इसलिये हमें भी दूसरों को मौका देना चाहिये। कुछ ऐसा लगा कि मानो कोई हमे चुटकी काटने दे रहा है तो हमें उसको अपने हाथ काटने की इजाज़त दे देनी चाहिये। आनंद शर्मा जैसे लोग चरण वंदना करके क्या बन सकते हैं इसका उदाहरण आपके सामने है। हम समझ रहे थे आनंद शर्मा भारत सरकार के मंत्री हैं, लेकिन उनके इस तर्क से तो लगता है कि वे कम से कम भारत सरकार के तो मंत्री नहीं है, आने वाले समय में पता चलेगा कि वे किस देश के मंत्री हैं। कपिल सिब्बल कह रहे थे कि सिर्फ 18 शहरों में किराना स्टोर खुलेंगे, और बात ऐसे हो रही है मानो पूरे देश में इनकी बाढ़ आ जायेगी। तो कपिल साहेब ये 18 शहर देश के बाहर कर दिये आपने, कल आप यह तो नहीं कहेंगे न कि दिल्ली में चांदनी चौक में आतंकवादियों ने बम फोड़ा है इसलिये सारे देश को चिंतित होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि आपने दिल्ली और विशेष रूप से चांदनी चौक का निर्यात कर दिया है। सिब्बल की बाते सुन कर मुझे इतिहास की किताब के वे शब्द याद आ गया जब अंग्रेजों ने बंगाल, अवध आदि के नवाब से सीमित जगहों पर लगान वसूली की अनुमति मांगी थी....अंत क्या हुआ सबको मालूम है।

हमारे देश के ये मंत्री जितना मुँह खोलते है, उनकी औकात उतनी ही सामने आती जाती है। संसद की गरिमा पर लेक्चर देने वाला आदमी, विपक्षियों को जानवर कहता है। अन्ना को भगोड़ा कहने वाला मंत्री बन जाता है। देश को बेच डालने के लिये कुतर्क देने वाला वाणिज्य मंत्री बना दिया जाता है। ज़बान के इतने गंदे लोग भीतर से कितने गंदे होंगे इस बात का आप अंदाज़ ही लगा सकते हैं। कपिल सिब्बल के साथ ऐसे कितने ही किस्से मिल जायेंगे। इस पर तुर्रा ये कि ये हमारे समाज से आये हैं।


सरकार को FDI की कितनी जल्दी है इसकी बानगी एक बयान से और आती है जब आनंद शर्मा कहते है कि FDI पर काफी बहस हो चुकी है काफी समय बीत चुका है। तो भईया वॉलमार्ट के प्रवक्ता जी कुपया उन बिलो पर भी निगाह मारिये जो पचीस-पचीस साल से संसद की धूल फांक रहे हैं, जैसे लोकपाल, महिला आरक्षण और न जाने कितने। आनंद शर्मा वॉलमार्ट का समर्थन करते हुये अपनी कुहनी के बल बैठ कर संसद में कह गये कि "कंसेंसेस का मतलब आम सहमति है, सर्व सहमति नहीं...एंड इफ यू हैव टू वेट फॉर यूनानिमिटी, देन यू विल हैव टू वेट टिल एटर्निटी" Consensus ka matlab aam sehmati, sarva sammati nahi..If you have to wait for unanimity, you wait till eternity: Anand Sharma


तो प्रभु थोड़ा प्रकाश इधर भी डालिये, यह तथ्य भी थोड़ा स्पष्ट कर दीजिये कि महिला आरक्षण बिल पर आम सहमति का क्या मतलब है....मेरा ख्याल है वहां पर आम सहमति सर्व सहमति ही है...क्योंकि उसे "एटर्निटी" तक लटकाना है। इन जैसे बिलों पर सरकार को कतई जल्दी नहीं है, क्योंकि इनसे धनागमन नहीं जुड़ा है? ये कमअकल, इतना नहीं समझते कि अमरीका जैसे मुल्क सिर्फ और सिर्फ अपना भला देखते हैं और उनको आपके भाड़ मे जाने की भी चिन्ता नहीं है। वैसे मुझे तो लगता है कि ये खूब समझते हैं क्योंकि ये भी सोचते अमरीका की ही तरह हैं.....सिर्फ अपना भला देखो, देश का भला देखने को बहुत सारे लोग हैं।

आइये इनके बंधुओं और सखाओं पर एक दृष्टिपात कर ले....अर्थात...लालू, मालू, बहनालू और करुणालू....एक चारे का मारा, दूसरा अधिक कमाई का मारा, तीसरी पर घोटालों की तलवार, चौथा घोटालेबाजों के खानदान का मुखिया। इन चारों का ईमान सीबीआई के पास गिरवी है। इधर सीबीआई...आयी और इन सबकी धोती खुल जाती है। बहाना बचता है सांप्रदायिकता। बड़ी अजीब सी बात है धर्म और जात के नाम पर वोट मांगने वाले और अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों का डर दिखाने वाले खुद को सेक्युलर कहते हैं। और उनको वोट देने वाला तबका इतने बरसो में नहीं जान पाया कि असली सांप्रदायिक कौन है। खैर वो भी समझेगा...। और फिर यहां FDI पर चर्चा के समय आप विरोध करते हैं लेकिन जब निर्णय लेने की बारी आती है तो दुम दबा के भाग लेते है, क्योंकि आपके हाथ तो दबे हैं। आप लोगों के इस निर्णय पर कोई भी तर्क टिक नहीं सकता। इन चारों ने सरकार की नाक नहीं बचायी है, इन्होने अपनी जान बचायी है।

सारांश यह है कि चाहे FDI हो या CBI सरकार की अपनी जिद है, क्योंकि सरकार के कर्ताधर्ता अपने तक सीमित हैं और इलेक्शन को वोटर मैनेजमेंट से अधिक कुछ नहीं समझते। उनके लिये लोकतंत्र एक प्रबंधन है जिसे हर पांच साल पर सेट किया जाता है। उनके लिये राजनीति एक पेशा है जो कमाई करने के लिये अपनाया जाता है।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें